KP Saxena पद्मश्री सम्मानित के.पी.सक्सेना

अगर आप कोई फिल्म देखें और उस फिल्म मे कोई सवांद ही ना हो तो केसा होगा ये वैसा ही होगा जैसे बिना आत्मा के शरीर…

आज बात करेंगे फिल्म सवांद और पटकथा लेखक, महशूर व्यंग्यकर, पद्मश्री से सम्मानित के.पी.सक्सेना जिनके लिखे सवांद ने फिल्मो को सुपर हिट कर दिया|

हिन्दी के गौरव, के.पी.सक्सेना पूरा नाम कालिका प्रसाद सक्सेना था, के.पी.सक्सेना का जन्म 13 अप्रैल 1932 को बरेली मे हुआ, के.पी.सक्सेना जब 10 साल के थे तभी उनके पिताजी का निधन हो गया, और वो अपनी माँ के साथ अपने मामा के यहाँ लखनऊ आ गए, के.पी.सक्सेना के मामा की रेलवे मे नौकरी थी |

यही लखनऊ शहर उन्होंने मे स्कूल और वनस्पतिशास्त्र मे एम.एस.सी (M.S.C.) की उपाधि प्राप्त करी..ओर वो ईसाई कॉलेज कॉलेज में प्रोफेसर बन गए, यहाँ  कुछ साल नौकरी करने के बाद उन्हें रेलवे में सरकारी नौकरी मील गई..ओर उनकी पोस्टिंग भी लखनऊ शहर मे  ही हो गई |

बचपन से लिखने का शौक रहने वाले के.पी.सक्सेना रेलवे की नौकरी के साथ-साथ हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के लिये व्यंग्य भी लिखने लगे, बाद मे उन्होंने अनेक व्यंग्य रचनाऐ और आकाशवाणी रेडियो और दूरदर्शन के लिए कई नाटक और धारावाहिक भी लिखने लगे, अपने लेखन मे उन्होंने हिंदी, अवधी और उर्दू को समान अधिकार दिए |

उन्होंने पहली फिल्म “दो गज जमीन के निचे” लिखी जो की 1972 मे आयी थी..

साल 1981 मे जब उन्होंने लखनऊ दूरदर्शन के लिए धारावाहिक “बीबी नातियों वाली” लिखा जिसका निर्देशन करा था रामेंद्र सरिन, इस धारावाहिक को लोगो ने बहुत पसंद किया, लोगो की पसंद को देखते हुई बाद में इसे राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रसारित किया गया, जिससे उन्हें पुरे देश मे एक अलग पहचान बन गई |

धारावाहिक बीबी नातियों वाली पटकथा, कहानी और संवाद, सब कुछ के.पी.सक्सेना ने लिखे |

इसके बाद उन्होंने कही व्यंग्य, कहानियाँ, पुस्तके लिखी, उनके व्यंग्य को इतना पसंद करा जाने लगाकी उनके व्यंग्य लेखक होते हुए भी उन्हें कवी सम्मेलन मे आमंत्रित किया जाने लगा |

साहित्य और शिक्षा क्षेत्र के साल 2000 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया गया..

फिर आई आशुतोष गोवारिकर की लगान फिल्म जिसमे आमिर खान मुख्य कलाकार थे, लगान फिल्म के निर्माता भी थे, लगान फिल्म की कहानी एक गांव बैकग्राउंड पर थी जिसमे आमिर को गांव की बोली बोलना थी जिसमे अवधी भाषा का प्रयोग होना था |

आमिर ने अपनी फिल्म लगान के सवांद के लिखने के लिये के.पी.सक्सेना का फ़ोन करा और वो इसके लिये राजी भी हो गये लेकिन एक शर्त पर की वो फिल्म के सवांद लखनऊ मे अपने घर पर बैठ कर लिखेंगे ।

के.पी.सक्सेना ने लगान सवांद अपने घर पर लिखे और जो लिखा उसने फिल्म मे जान डाल दी…

चूल्‍हे से रोटी निकालने के लिए चिमटे को अपना मुंह जलाना पड़ता है..

ये जो सवांद है वो फिल्म लगान का है.. जो याद दिलाता है, मुंशी प्रेमचंद्र की… और उनकी कहानी “ईदगाह” की जिसमे वो छोटा बच्चा खिलौने न लेते हुए अपनी दादी के लिये मेले से चिमटा खरीद कर लाता है, ताकि रोटी सेकते वक्त उनका हाथ ना जले..

फिल्म लगान के बाद के.पी.सक्सेना ने स्वदेश, हलचल और जोधा अकबर के सवांद लिखे.. जहा लगान मे उन्होंने अवधी भाषा मे सवांद लिखें तो फिल्म जोधा अकबर उर्दू के सवांद लिखें के.पी.सक्सेना ने अपने लेखन की शुरुआत ही उर्दू में उपन्यास लेखन के साथ करी थी लेकिन बाद में अपने गुरु अमृत लाल नागर की सलाह से हिन्दी व्यंग्य के क्षेत्र में आ गये |

अपने ही पानी में पिघल जाना…बर्फ का मुकद्दर होता है.

ये सवांद भी के.पी.सक्सेना ने फिल्म स्वदेश मे लिखा था..

सबसे ज्यादा पड़े जाने व्यंग्यकार की बात करे तो हरिशंकर परसाई और शरद जोशी के बाद उनका ही नाम आता है..

के पी सक्सेना की प्रमुख रचनाएँ

1. नया गिरगिट
2. कोई पत्थर से
3. मूँछ-मूँछ की बात
4. रहिमन की रेलयात्रा
5. रमइया तोर दुल्हिन
6. लखनवी ढँग से
7. बाप रे बाप
8. गज फुट इंच
9. बाज़ूबंद खुल-खुल जाय
10. श्री गुल सनोवर की कथा।

जीवन के आखरी समय में उन्हें जीभ का कैंसर हो गया था, 30 अक्टूबर 2013 को इस महशूर व्यंग्यकर का लखनऊ शहर मे निधन हो गया..

के.पी.सक्सेना का कहना था –

जिंदगी इतनी खूबसूरत हो कि ,
जिस दिन मौत आये .
उस दिन हमारे साथ ,
वह भी खूबसूरत हो जाये .

के.पी.सक्सेना के जीवन सफर का ये आर्टिकल केसा लगा कमेंट बॉक्स मे जरूर लिखिए और के.पी.सक्सेना से जुड़ा कोइ किस्सा या बातें, यादे आप सांझा करना चाहते हो तो आप कमेंट कर सकते हो |

धन्यवाद् जय हिन्द ..

 

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