दोस्तो आज मै जिस शख्श की बात कर रहा हु वो लेखक है, कवि, शायर, गीतकार, पटकथा लेखक ओर साथ-साथ एक अच्छे वक्ता भी है, अब तो आप समझ ही गये होंगे की मै जिस शख्श की बात कर रहा हु, वो है भारतीय सिनिमा का जाना पहचाना नाम जावेद अख़्तर !
17 जनवरी 1945 ग्वालियर, मध्यप्रेश मे जन्मे जावेद साहब की पिता कवि ओर माता उर्दु लेखिका थी, तो जाहिर सी बात है की बेटे जावेद की रूचि भी लेखन में हो !
पद्म भूषण से सम्मानित जावेद अख्तर ने सलीम खान के साथ मिलकर शोले, दीवार, हाथी मेरे साथी, ज़ंजीर जैसी लगभग २ दर्जन फिल्मों की कहानी लिखी जिसमे कई फिल्मे सुपरहिट फिल्म की लिस्ट मे शामिल है |
जावेद अख्तर ने अपने बारे मे उनकी वेबसाइट http://javedakhtar.com/ पर लिखा है उसकी कुछ लाइन आप के साथ सांझा कर रहा हु…
लोग जब अपने बारे में लिखते है तो सबसे पहले यह बताते है कि वो किस शहर के रहने वाले है – मै किस शहर को अपना कहुँ ?…. पैदा होने का जुर्म ग्वालियर मे किया लेकिन होश संभाला लखनऊ में, पहली बार होश खोया अलीगढ़ में, फिर भोपाल में रहकर कुछ होशियार हुआ लेकिन बम्बई आकर काफी दिनों तक होश ठिकाने रहे, तो आइए ऐसा करते है कि मे अपनी ज़िन्दगी का छोटा सा फ्लैशबैक बना लेता हु | इस तरह आपका काम यानी पढ़ना भी आसान हो जाएगा और मेरा काम भी, यानी लिखना |

जावेद अख्तर ने जब भी काम किया अपनी शर्तो पर करा, उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू मे बताया था, की उन्होंने करण जोहर को गाने लिखने के लिये इस लिये मना कर दिया क्योकि उनको फिल्म का टाइटल/ नाम पसंद नहीं आया वो फिल्म थी “कुछ-कुछ होता है ” खैर बाद मे कुछ-कुछ होता है गीत महशूर राइटर अनजान के बेटे समीर ने लिखें |
दोस्तो जावेद अख्तर का twitter अकाउंट देखोगे तो उसमे उनके नाम के बाद जादू लिखा है, तो क्या जावेद अख्तर का बचपन का नाम जादू था ? इसका जवाब मुझे मिला एक किताब मे..

नसरीन मुन्नी कबीर ने जावेद अख्तर से सिनेमा के बारे लम्बी बातचीत की और उसे एक बुक के रूप मे प्रकाशित करी जिसका की नाम है, जावेद अख्तर से बातचीत सिनेमा के बारे मे ..

इसमें पेज नंबर २३ पर नसरीन मुन्नी कबीर ने जावेद साहब से ये प्रश्न पूछा था
नसरीन मुन्नी कबीर : ये “जावेद” नाम पड़ा कैसे ?
जावेद अख्तर : ये एक दिलचस्प कहानी है | मै (जावेद अख्तर) सन 1945 को 17 जनवरी को ग्वालियर के कमला अस्पताल में पैदा हुआ | मेरा नाम क्या हो जब इस बात पर चर्चा की तो किसी ने मेरे वालिद को याद दिलाया कि जब उन्होंने मेरी वालिदा सफिया से शादी की थी तो उन्होंने एक नज़्म कही थी जिसमे एक लाइन ये भी थे –
“लम्हा, लम्हा किसी जादू का फ़साना होगा”
तो इसका नाम जादू क्यों न रख दे ?
नसरीन मुन्नी कबीर : वाह !
जावेद अख्तर : तो उन्होंने मेरा नाम जादू रख दिया और काफी वक्त तक मै सिर्फ जादू के नाम से जाना जाता था | लेकिन जब ये फैसला किया गया कि मैं के.जी. में जाऊ तो लोगों ने कहा कि जादू कोई साजिंदा नाम नहीं है लेकिन तब तक जादू ही मेरा नाम बन चूका था इसलिए उनको कोई ऐसा नाम ढूढना पड़ा जो मिलता-जुलता हो | तो इस तरह वो जावेद नाम पर पहुँचे |

जावेद अख्तर से जुडी ये जानकारी आप को केसी लगी कमेंट बॉक्स मे जरूर लिखियेगा |
धन्यवाद जय हिंद !