यादो का सिनेमायी सफर मे आप का स्वागत है, आज का सफर मे हमारे साथ है, गीतकार, कवि शैलेन्द्र जी हा दोस्तों आज फिर एक बड़े नाम के साथ आया हु, शैलेन्द्र पूरा नाम कहु तो शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र, जिन्हे सब लोग शैलेन्द्र के नाम से जानते है|
शैलेन्द्र की जो कभी सिनेमा के लिए गीत नहीं लिखना चाहते थे | लेकिन कुछ कारण से लिखना पड़ा और जब उन्होंने गीत लिखे तो फिल्म जगत मे गीत की एक अलग दुनिया देखने और सुनने को मिले हमें | उनके लिखे हर सरल गाने के अंदर एक कठिन बात छुपी रहती है |
कैसे शैलेन्द्र जी को फिल्मो मे गाने लिखेने के ऑफर मिला और पहला गाना कौन सा लिखा आज यही बात आप लोगो से शेयर करुगा |
शैलेन्द्र जी बात करे तो कई गाने मन मे गुजने लगते है, उनके लिखे गीत ज़मीन से जुड़े हुए है और वो एक सच्चाई बयां करते है , उन्होंने जो गीत और कविता लिखी वो एक सरल भाषा मे एक गहरी बात कहते है, जैसे उनका लिखा वो गीत “दिल का हाल सुने दिलवाला सीधी सी बात न मिर्च मसाला” या उनका लिखे “आवारा हूँ” गीत की ये लाइन “घरबार नहीं, संसार नहीं मुझसे किसी को प्यार नहीं”…
ये बात साल 1947 के आसपास की है, जब देश आजाद हुआ था | देश के कवी अपनी बात/ जस्बाद अपनी कविता से आम जनता तक पंहुचा रहे थे उस समय शैलेन्द्र जी ने एक कविता लिखी थी “जलता है पजांब ” जो काफी मशहूर हुए |
शैलेन्द्र कविता के साथ साथ इप्टा के लिए भी गीत लिखते थे | जिसका पूरा नाम है भारतीय जन नाट्य संघ, इप्टा एक थियेटर ग्रुप है | जिसमे बहुत सारे फिल्म मेकर्स और कलाकार जुड़े है |
मुम्बई मे इप्टा का प्रोग्राम हुआ उसमे कही कवियों ने अपनी कविताए सुनाई उस जलसे मे शैलेन्द्र जी ने अपनी मशहूर कविता “जलता है पजांब” सुनाई जो सबको बहुत पसंद आये | उसी जलसे मे पृथ्वीराज कपूर अपने बेटे राजकपूर के साथ आये थे | राजकपूर ने शैलेन्द्र जी की कला को उसी समय भाप लिया | राजकपूर उस समय फिल्म “आग” पर काम कर रहे थे | फिर क्या था राजकपूर साहब ने अपनी फिल्म “आग” के गाने लिखेंने के लिए शैलेन्द्र जी से बात करी | इस पर शैलेन्द्र जी बोले मेरी सिनमा मे गाने लिखने का कोई इरादा नहीं है | कविताए तो मे बस अपने दिल की भावनाए व्यक्त करने के लिए लिखता हु | सिनमा जगत के लिए काम करने का ऐसा कोई इरादा नहीं है | राजकपूर ने अपना ऑफिस का पता देते हुए बोले की कोई बात नहीं जब भी आप को लगे आप के लिए मेरे ऑफिस के दरवाजे हमेशा खुले है |
खैर कोई बात नहीं, कुछ दिन बीते शैलेन्द्र जी की रेलवे वर्कशाप मे जॉब थी | वेतन कम था, उसी समय उनकी पत्नी बीमार हो गए और शैलेन्द्र जी को पैसे की जरुरत पड़ गए | शैलेन्द्र जी को राजकपूर याद आये वो गए उनकी पास और बोले की मे गाने तो नहीं लिख सकता लकिन मुझे कुछ पेसो की जरुरत है अगर आप दे दो तो मे कुछ दिन मे लौटा दुगा | राजकपूर ने बिना कुछ सवाल करे उन्हें 500 रुपए दे दिए | आप को बता दू उस ज़माने मे 500 रुपए एक बहुत बड़ी रकम होती थे |
कुछ दिन बीते शैलेन्द्र जी ने जो पैसे राजकपूर से लए थे वो जमा करे और लौटाने पहुंच गए | जब वो पैसे देने के बाद वापस आने लगे तो इस पर राजकपूर ने पता नहीं कुछ ऐसे बात करी की वो फिल्मो के मे गीत लिखने को राजी हो गए | उस समय राजकपूर “आग” बना चुकी थे और वो उनकी अगली फिल्म “बरसात” पर काम कर रहे थे | पता नहीं ये बात सच है की नहीं उस समय जब शैलेन्द्र जी राजकपूर के यहाँ गए तब पानी बहुत गिर रहा था | तो उसी समय शैलेन्द्र जी के मन मे ये बात आ गए “बरसात में हमसे मिले तुम सजन” और इस तरह से शैलेन्द्र जी को राजकपूर फिल्मो जगत मे लाए | राजकपूर मे वो कला थी जो आदमीं को देख कर उसकी हुनर को समझ जाते थे |
“”बरसात” मे शैलेन्द्र जी दो गाने लिखे “बरसात में हमसे मिले तुम सजन” और “”पतली कमर है तिरछी नज़र है ” और दोनों गाने लोगो ने बहुत पसंद करें |
शैलेन्द्र जी और राजकपूर के बारे ओर बात करता लकिन फ़िलहाल दीजिए इज़ाजत….. धन्यवाद जय हिन्द
आप को ये किस्सा केसा लगा आप निचे कमेटं बॉक्स मे लिख सकते हो….