यादो का सिनेमायी सफर मे आप का स्वागत है, आज भारतीय सिनेमा के ऐसे संगीत सितारे को ले कर आया हु जो हमेशा चमकता रहेगा, रफ़ी साहब पूरा नाम मोहम्मद रफ़ी.. रफ़ी साहब ने अपने गीतों से सब के दिलो पर राज करा, वो एक अच्छे सिंगर तो थे ही साथ ही वो एक नेक दिल इंसान भी थे, जो भी उनसे मिलता उन्ही का हो जाता। आज बात करेगी रफ़ी साहब के पहले गाने के बारे मे..
रफ़ी साहब ने 10-12 वर्ष की उम्र से ही रेडियो पर गाना गाने मिलने लगे | जब एक संगीत प्रोग्राम मे संगीतकार श्याम सुन्दर ने रफ़ी साहब को सुना तो उन्होंने अपनी एक पंजाबी फिल्म “गुल बलोच” मे एक गाना गवाया जो की साल 1944 मे आई | ये बात साल 1941 के है ओर वो पंजाबी गाने के बोल कुछ ऐसे थे…
गोरिये नी हीरिये नी तेरी याद नें मेनू मारा..
उसके बाद साल 1942 मे वो मुंबई आ गए.. अलग-अलग संगीतकारों से मिलते ओर अपना गाना सुनाते |
पहला हिंदी गाना रफ़ी साहब को मिला फिल्म “पहले आप” मे जिसके संगीतकार थे “नौशाद साहब”, ये गाना कोरस था जिसमे रफ़ी साहब के साथ पीछे कोरस मे ओर भी साथी गायक थे… इस गाने का भी एक किस्सा है |
ये जो गाना फौजे जा रही है इस पर फिल्माना था, तो रफ़ी साहब को फौजी के जूते पहनाए गए ओर जूते के थाप की आवाज के साथ ये गाना गवाया। इस गाने के बोल थे….
हिन्दुस्तान के हम है, हिन्दुस्ता हमारा
हिन्दू मुस्लिम दोनों की आँखो का तार…
यही रफ़ी जी का पहला हिंदी गाना था…
ये बात साल 1942 के आसपास की है…
अगर आप ने ये गान नहीं सुना है अभी सुनिए…
आप को ये किस्सा केसा लगा आप निचे कमेटं बॉक्स मे लिख सकते हो….
धन्यवाद जय हिन्द